September 20, 2024

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हाइलाइट्स

अमेरिकी राष्ट्रपति ने कांग्रेस में इजरायल –यूक्रेन संकटों के लिए 105 अरब डॉलर मांगे हैं.
वे इसे अमेरिका के सुरक्षित भविष्य के लिए एक बढ़िया निवेश बता रहे हैं.
बाइडन का यह बयान अमेरिका निकट भविष्य की नीति को स्पष्ट करता है.

मिडिल ईस्ट में युद्ध की स्थिति खराब होने संभावना ना केवल बनी हुई है बल्कि बढ़ भी रही है. गाजा के अस्पताल में हुए हमले ने हालात और खराब करने का काम किया है जबकि उसी समय अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन मध्य पूर्व की यात्रा पर थे. इस यात्रा से लौटने के बाद  बाइडन ने ओवल ऑफिस से राष्ट्र को सम्बोधित किया कहा कि वे कांग्रेस से इजरायल के लिए फंड की मांग करेंगे और यह एक स्मार्ट निवेश होगा जो भविष्य में अमेरिकी पीढ़ियों को लाभांश देगा. उनका बयान बदलते हालात में अमेरिक की नीति का रुख बताने वाले वक्तव्य के तौर पर देखा जा रहा है.

सहयोगियों की मदद के लिए
बाइडन ने अपने सम्बोधन में कहा था कि वे कांग्रेस में आपात बजट का निवेदन करेंगे जिससे अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा जरूरतों के लिए फंड के तौर पर काम करेगा जिससे अमेरिका के इजरायल और यूक्रेन जैसे अहम सहयोगियों की मदद की जा सके. यह पीढ़ियों तक अमेरीकी सुरक्षा का लाभांश देने वाला स्मार्ट निवेश है.

सेना भेजी जा सकेगी!
बाइडन ने अपने बयान में कहा कि इस बजट से इजरायल और यूक्रेन दोनों को मिलने वाली मदद जारी रहेगी और दोनों युद्धों में अमेरिकी सेना भेजा जा सकेगा. उन्होंने साफ किया कि “हम अमेरिकी सेना को रूस में या रूस के खिलाफ लड़ने के लिए नहीं भेज रहे हैं. लेकिन उन्होंने गाजा  में चल रहे  युद्ध में अमेरिकी सेना भेजने की संभावनाओं पर भी कुछ नहीं कहा.

इजरायल के लिए समर्पित?
एक मीडिया रिपोर्ट में दो इजरायली अधिकारियों ने बताया है कि बाइडन ने हाल ही में इजरायल से कहा है कि अगर हिजबुल्लाह ने शुरुआत की तो अमेरिकी सेना इजरायली सेना का साथ देगी. बाइडन का यह रुख और बयान बताता है कि वह मध्य पूर्व में अपनी उपस्थिति से पैदा होने वाली समस्याओं का परवाह नहीं करता है.

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इजरायल के जरिए अमेरिका मध्यपूर्व में अपना प्रभाव बढ़ा सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Shutterstock)

पीछे नहीं हट सकते
बाइडन ने कहा कि फंड दुनिया हमारे बच्चों और पोते पोतियों को और ज्यादा सुरक्षित, शांतिपूर्ण और सम्पन्न बनाने में मदद करेगा. अमेरिकी साझेदारियां अमेरिका को सुरक्षित करेंगी. अमेरिकी मूल्य ही उसे सहयोगी देशों के साथ काम करने के लिए प्रेरित करते हैं. यह सब तब जोखिम में आ जाएगा जब हमें यूक्रेन से पीछे हट जाएं या फिर इजरायल में पीठ दिखा दें.

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मध्य पूर्व में अमेरिका
फिलहाल मध्य पूर्व में केवल इजरायल ही अमेरिका का बड़ा सहयोगी है जबकि सके बाकी प्रमुख देशों से संबंध अच्छे नहीं चल रहे हैं. इनमें ईरान शीर्ष पर है. लेकिन पिछले कुछ सालों से सऊदी अरब से उसकी दूरियों ने मध्य पूर्व में समीकरण बिगाड़ दिए हैं और इससे उसका क्षेत्र में घटते प्रभाव के तौर पर देखा जा रहा था.

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मध्य पूर्व में आने वाले समय में अमेरिका का दखल बहुत बदलाव ला सकता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

एक तीर से दो निशाने?
एक तरफ बाइडन के बयान को अमेरिकी यहूदी वोट बैंक को साधने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ अमेरिका की मिडिल ईस्ट में प्रवेश के मौके को भुनाने के प्रयास की तरह भी देखा जा रहा है. लेकिन यह अमेरिकी की अंतरराष्ट्रीय राजनीति, खासतौर से मध्य पूर्व  में प्रभाव बढ़ाने के उसके इरादों को मजबूती देने का प्रयास कहा जा सकता है. इससे पता चलता है कि बाइडन मध्य पूर्व की घटनाओं के कारण यूक्रेन से ध्यान कम नहीं होने देने चाहते हैं.

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आने वाले एक साल में मध्य पूर्व में कम से कम तनाव बढ़ना तय है. देखना यह है कि अमेरिका अपनी सेना यहां भेजता है या नहीं और ईरान उस पर कैसी प्रतिक्रिया देता है. वहीं क्या दुनिया के अन्य देश अमेरिक और इजरायल को शांति के लिए प्रयास करने के लिए दबाव डाल पाएंगे.  अगले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव तक बाइडन किस तरह से संकट को बड़ा होने से रोक पाएंगे. यह देखना होगा.

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